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August 14, 2011

राष्ट्रध्वज फहरानेकी पद्धतियां

Rajesh Kumawat | 16:08 | Best Blogger Tips


 
               देशकी अस्मिताका प्रतीक राष्ट्रध्वज अर्थात् तिरंगा राष्ट्रीय त्यौहार एवं अन्य महत्त्वपूर्ण दिनको सम्मानपूर्वक फहराया जाता है । राष्ट्रके प्रतीक इस राष्ट्रध्वजको फहराते समय उसका किसी भी प्रकारका अवमान न हो, इसलिए कुछ विधान बनाए गए हैं । केंद्रीय गृह मंत्रालयकी ओरसे भारतीय राष्ट्रध्वज संहिता बनाई गई है । ध्वज संहिताके विषयमें नागरिकोंमें जागृति निर्माण हो, ऐसी अपेक्षा व्यक्त की गई है ।
      अल्प नागरिकोंको ही इसकी जानकारी है कि राष्ट्रीय ध्वजकी संहिता भी उपलब्ध है । संहिताके अनुसार महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम, सांस्कृतिक तथा मैदानी खेलके समय नागरिक कागदके झंडे हाथमें लेकर लहराते दिखाई देते हैं । परंतु कार्यक्रमकी समाप्तिके उपरांत वही झंडे धरतीपर यहां- वहां पडे दिखाई देते हैं । ऐसा होना अनुचित है । प्लास्टिकसे बने झंडोंका उपयोग नहीं करना चाहिए ।

         ध्वज संहिताके अनुसार जब राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, तब उसे सम्मानपूर्वक ऊंचा स्थान देना चाहिए । राष्ट्रीय ध्वज ऐसे स्थानपर फहरा देना चाहिए जिससे वह सभीको दिखाई दे । शासकीय इमारतपर राष्ट्रध्वज फहरानेकी प्रथा है । रविवार अथवा अन्य छुट्टीके दिन भी सूर्योदयसे सूर्यास्ततक ध्वज फहराना आवश्यक है । प्रतिकूल हवामानमें भी ध्वज फहराना आवश्यक है ।

        संहिताके अनुसार राष्ट्रध्वज सदैव उत्साहसे फहराना चाहिए और धीरे-धीरे नीचे उतारना चाहिए । ध्वज फहराते समय अथवा उतारते समय रणसिंघा (रणभेरी) बजाना ही चाहिए । फहराते समय ध्वजमें विद्यमान केशरी रंगका पट्टा ऊपरकी ओर आना चाहिए ।

       यदि किसी सभाके समय राष्ट्रध्वज फहराना हो, तो ऐसे फहराना चाहिए जिससे मान्यवरका मुंह उपस्थितोंकी ओर हो और ध्वज उनकी दार्इं ओर हो । राष्ट्रध्वज यदि  दीवारपर होगा, तो मान्यवरोंके पीछे और दीवारपर आडा फहराना चाहिए । किसी प्रतिमाका अनावरण हो, तो ध्वजको सम्मानपूर्वक तथा विभिन्न पद्धतिसे फहराना चाहिए । ध्वज गाडीपर लगाते समय गाडीके बोनेटपर एक दंड खडा कर उसपर फहराना चाहिए ।



        संहिताके अनुसार राष्ट्रीय ध्वज किसी बारात अथवा परेडके व्यक्तिके बाए हाथमें ध्वज होना चाहिए । यदि अन्य ध्वज भी होंगे, तो राष्ट्रध्वज उनके मध्यमें होना चाहिए । कटा-फटे और मलिन ध्वजको नहीं फहराना चाहिए । किसी भी व्यक्तिको अथवा वस्तुको वंदन करते समय ध्वज धरतीकी ओर नहीं झुकाना चाहिए । अन्य ध्वजोंकी पताका अथवा ध्वज राष्ट्रध्वजकी ऊंचाईसे अधिक ऊंचा नहीं लगानी चाहिए ।

       राष्ट्रध्वजका उपयोग वक्ताकी व्यासपीठ ढकने अथवा उसकी सज्जाके लिए नहीं करना चाहिए । केशरी पट्टा धरतीकी ओर रखकर ध्वज नहीं लहराना चाहिए । राष्ट्रध्वजको मिट्टी अथवा पानीका स्पर्श नहीं होने देना चाहिए और फहराते समय प्रकार बांधना चाहिए कि उसे फहराते समय वह कट-फट न जाए, इसी ध्वजका अनुचित उपयोग रोकनेके लिए स्पष्ट दिशा निश्चित की गई है । उसके अनुसार राजकीय व्यक्ति, केंद्रीय सेनादलसे संबंधित व्यक्तिकी अंत्ययात्राके अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी उपयोग न करें । ध्वज कोई भी वाहन, रेलवे, जहाजपर लगाया नहीं जा सकता ।

        ध्वजका उपयोग घरके पटलके लिए नहीं करना चाहिए । किसी पेहनावेके लिए ध्वजका कपडा नहीं लिया जा सकता । राष्ट्रध्वज गद्दी, रूमाल अथवा नैपकीनपर नहीं बनाएं । राष्ट्रध्वजपर कोई लेखन नहीं किया जा सकता अथवा उसपर किसी भी प्रकारका विज्ञापन नहीं किया जा सकता । ध्वज जिस खंबेपर फहराया जाता है, उसपर विज्ञापन नहीं लगाए जा सकते ।

        केवल प्रजासत्ताक एवं स्वतंत्रता दिवसपर ही ध्वजपर फूलोंकी पंखुडियां रखकर लहराया जा सकता है । राष्ट्रीय ध्वज लहराते समय अथवा उतारते समय उपस्थित नागरिकोंको  कवायतकी सावधान स्थितिमें रहना चाहिए । शासकीय पहनावेमें/वर्दीमें रहनेवाले सरकारी अधिकारी ध्वजको मानवंदना देंगे, तो ध्वज सैनाकी टुकडीके सैनिकके हाथमें होगा और वह सावधान स्थितिमें खडा रहेगा । सरकारी अधिकारीके समीपसे ध्वज जाते समय उसे ध्वजको सम्मानपूर्वक मानवंदना देना अनिवार्य है । आदरणीय व्यक्ति सिरपर टोपी न पहनते हुए भी राष्ट्रध्वजको मानवंदना दे सकते हैं । (स्रोत- वार्ता)



वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। वन्दे मातरम् ।
कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।। वन्दे मातरम् ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे
मातरम् ।। ३ ।। वन्दे मातरम् ।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।। वन्दे मातरम् ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।। वन्दे मातरम् ।

    - बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी)
(`वन्दे मातरम्' यह  गीत रविवार, कार्तिक शुद्ध नवमी, शके १७९७ (७ नोव्हेंबर १८७५) इस  दिन  पूरा हुआ.) 

वन्दे मातरम्'की प्रस्तावना

हे माते, मैं तुम्हें वंदन करता हूं ।

           जलसमृध्द तथा धनधान्यसमृध्द दक्षिणके मलय पर्वतके ऊपरसे आनेवाली वायुलहरोंसे शीतल होनेवाली तथा विपुल खेतीके कारण श्यामलवर्ण बनी हुई, हे माता !

           चमकती चांदनियोंके कारण यहांपर रातें उत्साहभरी होती हैं, फूलोंसे भरे हुए पौधोंके कारण यह भूमि वस्त्र परिधान किए समान शोभनीय प्रतित होती है । हे माता, आप निरंतर प्रसन्न रहनेवाली तथा मधुर बोलनेवाली, वरदायिनी, सुखप्रदायिनी हैं !

          तीस करोड मुखोंसे निकल रही भयानक गरजनाएं तथा साठ करोड हाथोंमें चमकदार तलवारें होते हुए, हे माते आपको अबला कहनेका धारिष्ट्य कौन करेगा ? वास्तवमें माते, आपमें सामथ्र्य हैं । शत्रुसैन्योंके आक्रमणोंको मुंह-तोड जवाब देकर हम संतानोंका रक्षण करनेवाली हे माता, मैं आपको प्रणाम करता हूं ।

           आपसेही हमारा ज्ञान, चरित्र तथा धर्म है । आपही हमारा हृदय तथा चैतन्य हैं । हमारे प्राणोंमें भी आपही हैं । हमारी कलाईयोंमें (मुठ्ठीमें) शक्ति तथा अंत:करणमें काली माता भी आपही हैं । मंदिरोंमें हम जिन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठापना करते हैं, वे सभी आपकेही रूप हैं ।

          अपने दस हाथोंमें दस शस्त्र धारण करनेवाली शत्रुसंहारिणी दुर्गा भी आप तथा कमलपुष्पोंसे भरे सरोवरमें विहार करनेवाली कमलकोमल लक्ष्मी भी आपही हैं । विद्यादायिनी सरस्वतीभी आपही हैं । आपको हमारा प्रणाम है । माते, मैं आपको वंदन करता हूं । ऐश्वर्यदायिनी, पुण्यप्रद तथा पावन, पवित्र जलप्रवाहोंसे तथा अमृतमय फलोंसे समृद्ध माता आपकी महानता अतुलनीय है, उसे कोई सीमाही नहीं हैं । हे माते, हे जननी हमारा तुम्हें प्रणाम है ।

           माते, आपका वर्ण श्यामल है । आपका चरित्र पावन है । आपका मुख सुंदर हंसीसे विलसीत है । सर्वाभरणभूषित होनेके कारण आप कितनी सुंदर लगती हैं ! सचमें, हमें धारण करनेवाली तथा हमें संभालनेवालीभी आपही हैं । हे माते, हमारा आपके चरणोंमें पुन:श्च प्रणिपात ।

राष्ट्रगीत

जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्यविधाता
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंगा
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंगा
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जयगाथा
जन गण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे!


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