सालाना पांच लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वालों को रिटर्न भरने से छुटकारे की बात कागज पर बेशक अच्छी लगती है लेकिन गौर से देखें तो शायद ही कोई इन शर्तों को पूरा कर पाए। टैक्स रिटर्न पर छूट के बारे में पूरी जानकारी :
सीबीडीटी ने ऐलान किया कि जिन सैलरीड लोगों की सालाना इनकम पांच लाख रुपये तक है, उन्हें रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है। इससे करोड़ों लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई, लेकिन बारीकी से देखें तो ऐसा नहीं लगता कि कोई भी इसका फायदा उठा पाएगा। दरअसल, रिटर्न में इस तरह की शर्तें रखना सीबीडीटी की एक चाल नजर आती है, जिसका असलियत में फायदा शायद ही कोई ले पाए।
क्या हैं नया नियम
24 जून को जारी नोटिफिकेशन में बताया गया है कि आप फाइनैंशल ईयर 2010-11 में रिटर्न भरने से बच सकते हैं, अगर इन शर्तों को पूरा करते हैं :
- कटौती के बाद साल की कुल इनकम पांच लाख रुपये या उससे कम हो। - इनकम में सिर्फ सैलरी और बैंक सेविंग से मिलनेवाले ब्याज को ही शामिल किया जाएगा।
- सैलरी सिर्फ एक एम्प्लॉयर से मिली हो।
- बैंक में जमा बचत से मिलनेवाला सालाना ब्याज 10 हजार रुपये से कम हो।
- बैंक में बचत खाते के ब्याज पर टैक्स चुका दिया गया हो और इसका ब्यौरा फॉर्म 16 में हो।
किसे नहीं मिलेगा फायदा
यह ऐलान ऐसे वक्त पर हुआ है, जब फॉर्म 16 तैयार हो चुके हैं और करदाताओं को दिए भी जा चुके हैं। सवाल है कि क्या आखिरी पलों में फॉर्म 16 में बदलाव मुमकिन होगा? क्या दूसरी शर्त भी तर्कसंगत है, जिसके मुताबिक इनकम सिर्फ सैलरी और सेविंग अकाउंट पर मिलनेवाले ब्याज से होनी चाहिए? सालाना 3-4 लाख रुपये कमाने वाले ऐसे कितने लोग होंगे, जो एफडी, म्यूचुअल फंड, स्टॉक ट्रेडिंग, गोल्ड और प्रॉपर्टी से कमाई नहीं करते? अगर आप टैक्स बचाने के लिए एफडी या एनएससी में निवेश करते हैं या आपको ईएलएसएस से डिविडेंड मिलता है तो आप रिटर्न से छूट के हकदार नहीं होंगे। अगर आपने एक महीने के लिए भी अपना मकान किराए पर दिया है तो भी रिटर्न फाइल करना होगा। जिसने भी सेक्शन 80 सीसीएफ में छूट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में निवेश कर रखा है, उसे भी यह फायदा नहीं मिलेगा। रिटर्न में छूट सिर्फ उनके लिए है, जिन्होंने टैक्स बचाऊ इनवेस्टमेंट नहीं किया है और अपने सारे पैसे बैंक में बचत खाते में डाले हुए हैं।
चलिए, मान लेते हैं कि कोई ऐसा शख्स है, जिसने कोई इनवेस्टमेंट नहीं किया है, इसलिए सैलरी और बैंक अकाउंट पर मिलनेवाले ब्याज के अलावा उसकी कोई और इनकम नहीं है। फिर भी वह छूट की शर्तों को शायद पूरा न कर पाए। नोटिफिकेशन के मुताबिक, ब्याज पर टैक्स भरा जा चुका हो और इनकम व टैक्स की जानकारी एम्प्लॉयर द्वारा फॉर्म 16 में दी गई हो। बैंक अकाउंट पर ब्याज छमाही आधार पर जमा किया जाता है।
अक्टूबर से मार्च के बीच का ब्याज 31 मार्च के बाद जमा होता है। इस इनकम पर निकलने वाले टैक्स का सही कैलकुलेशन करने और उसे जमा करने के लिए आपको फाइनैंशल एक्सपर्ट बनना होगा। साथ ही ये डिटेल्स एम्प्लॉयर को वक्त पर देने होंगे, जिससे इन्हें फॉर्म 16 में दिखाया जा सके।
शर्तें पूरी करना मुश्किल
आपने फाइनैंशल ईयर में नौकरी बदली है तो भी आपको रिटर्न भरने से छूट नहीं मिल पाएगी। आईटी, सॉफ्टवेयर जैसे सेक्टरों में लोग काफी जल्दी-जल्दी नौकरी बदलते रहते हैं, इसलिए वहां बहुत कम लोग इस छूट को पाने के हकदार होंगे। भले ही आपका एम्प्लॉयर सारे ब्यौरे फॉर्म 16 में दे दें, लेकिन कुछ और भी छूट होंगी, जिनका ब्यौरा फॉर्म 16 में नहीं होगा। उदाहरण के लिए, किसी चैरिटी को दिए गए दान का ब्यौरा फॉर्म 16 में नहीं होता। यह सिर्फ करदाता पर निर्भर करता है कि वह इस दान पर छूट हासिल करे और इसके लिए उसे टैक्स रिटर्न भरना ही होगा। इसी तरह, अगर आप लॉस को फारवर्ड करना चाहते हैं या आपको रिफंड लेना है तो भी आपको रिटर्न भरना ही होगा।
अगर आप इन तमाम शर्तों को पूरा कर लेते हैं तो यह काबिलेतारीफ होगा, लेकिन ध्यान रहे कि अगर आप अपना रिटर्न फाइल नहीं करते हैं, तो आप अपने रिटर्न में बदलाव के हक से भी वंचित होंगे। सिर्फ वे करदाता ही रिवाइज्ड रिटर्न भर पाएंगे, जिन्होंने तय तारीख तक अपना रिटर्न भरा है।
पांच लाख या उससे कम आमदनी के बावजूद भरना होगा रिटर्न अगर
- सैलरी और सेविंग अकाउंट पर मिलनेवाले ब्याज के अलावा और कहीं से भी आमदनी होती है।
- टैक्स बचाने के लिए एफडी या एनएससी में निवेश करते हैं या ईएलएसएस से डिविडेंड मिलता है।
- सेक्शन 80 सीसीएफ में छूट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में निवेश कर रखा है।
- एक महीने के लिए भी अपना मकान किराए पर दिया है।
- फाइनैंशल ईयर के दौरान नौकरी बदली है।
- नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना चाहते हैं या रिफंड क्लेम करना है।
ई-फाइलिंग से जुड़े मिथ और सचाई
ई-फाइलिंग के जरिए रिटर्न जमा करना बेहद आसान है और आप घर बैठे सिर्फ कुछ क्लिक में रिटर्न फाइल कर सकते हैं, लेकिन इसे लेकर कुछ दिक्कतें आती हैं। क्या आप भी रिटर्न के इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग का सच नहीं जानते? क्या ई-फाइलिंग के बारे में आपके मन में भी कुछ मिथ हैं। अगर हां तो जानिए यहां कुछ मिथ और उससे जुड़ी सचाई :
1. मिथ : इनकम टैक्स रिटर्न ऑनलाइन जमा करने के लिए डिजिटल सिग्नेचर चाहिए।
सचाई : अगर आप अपना रिटर्न पूरा ऑनलाइन फाइल करेंगे तो ही आपको डिजिटल सिग्नेचर चाहिए। बिना डिजिटल सिग्नेचर के भी आप ऑनलाइन रिटर्न फाइल कर सकते हैं। इसके लिए ऑनलाइन रिटर्न भरने के बाद उसका प्रिंटआउट लेकर उस पर दस्तखत करके इनकम टैक्स के बेंगलुरु ऑफिस पोस्ट से भेजना होता है।
2. मिथ : ई-फाइलिंग में स्क्रूटिनी के ज्यादा चांस होते हैं।
सचाई : हर साल इनकम टैक्स डिपार्टमेंट स्क्रूटिनी किए गए लोगों की लिस्ट निकालता है। चाहे आप रिटर्न ऑनलाइन फाइल करें या पेपर के जरिए करें, उस का इस लिस्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
3. मिथ : ई-फाइलिंग के पैसे कटते हैं, जबकि पेपर से फिजिकली रिटर्न जमा करने के कोई पैसे नहीं लगते।
सचाई : इनकम टैक्स विभाग की साइट से फ्री में ई-फाइलिंग की जा सकती है। कुछ प्राइवेट पोर्टल भी फ्री फाइलिंग ऑफर करते हैं। ई-फाइलिंग एनवायरनमेंट फ्रेंडली भी है।
4. मिथ : रिटर्न ऑनलाइन जमा करने के बाद रिवाइज नहीं किया जा सकता है।
सचाई : ऑनलाइन जमा किया गया रिटर्न भी बाकी की तरह रिवाइज किया जा सकता है। सारे ई-फाइलिंग पोर्टल रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न फाइल करने की छूट देते हैं।
5. मिथ : ई-फाइलिंग सेफ नहीं है और यहां से पर्सनल जानकारियां लीक हो सकती हैं।
सचाई : ई-फाइलिंग पूरी तरह सेफ है। जो भी जानकारियां ई-फाइलिंग के दौरान दी जाती हैं, उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को भेज दिया जाता है। यह पूरी तरह गोपनीय होता है।
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